क्लास-10, हिंदी (क्षितिज ), अध्याय = " स्त्री शिक्षा के विरोधी कुर्ताको का खंडन "के सभी प्रश्नों का उत्तर
नमस्कार, आज मै आपसभी के लिए क्लास 10 हिंदी ( क्षितिज ) के एक अध्याय के सभी प्रश्नों का उत्तर ले कर आया हूं, अगर आप ऐसा ही ढेर सारे पोस्ट देखना चाहते हो तो निचे दिया हुआ फॉलो बटन को दबा कर हमें फॉलो कर ले,
प्रश्न और उत्तर :-
प्रश्न 1 :-कुछ पुरानपंथी लोग स्त्रियों को शिक्षा के विरोधी थे द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर कि स्त्री शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर :-
कछ पुरानपंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे स्त्रियों को पढ़ाना है गृह - खुश में नाश के कारण समझते थे, इनमे से कई लोग उच्च शिक्षित थे, वे यह कह कर स्त्री शिक्षा का विरोध करते थे कि संस्कृत नाटकों में स्त्रियां संस्कृत में बात ना करके प्रकृति में बात करती है, जो उनके अनपढ़ होने का प्रमाण है,लेखिका निम्नलिखित तर्क देकर स्त्री शिक्षा का समर्थन करती है:-
क - संस्कृत नाटकों में प्राकृतिक बोलना स्त्रियों के अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं क्योंकि उस समय बोलचाल की भाषा प्रकृति थे.
ख - पुराने समय में भी आनेक स्त्रियां विदुषी थे, जिन्होंने बड़े-बड़े विद्वानों एवं ब्रह्म विद्वानों का छक्के छुड़ाए थे.
ग - पहले स्त्रियों को शिक्षा की जरूरत समझी या नहीं,पर अब उनकी शिक्षा की आवश्यकता है अतः उन्हें पढ़ाना चाहिए.
घ - हमें पुराने नियमों आदर्शों और प्रणालियों को तोड़कर स्त्री को पढ़ाना चाहिए.
प्रश्न 2 :- स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं, कुर्ताकवादियों की इन दलील का खंडन द्विवेदी जी ने कैसे किया अपने शब्दों में बताएं|
उत्तर :-
कुर्ताकवादियों का कहना है कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं अतः उन्हें पढ़ाना नहीं चाहिए उनके अनुसार उन्हें पढ़ाने से घर के सुख का नाश होता है,लेखक उनकी दलील का खंडन करते हुए कहती है कि स्त्रियों को पढ़ाने से अनर्थ होते हैं तो उन पुरुषों को बढ़ने से कौन सा सफल होते हैं,जो एम. ए ,बी.ए,शास्त्रीय और आचार्य होकर भी स्त्रियों पर हंटर फाटकरते और और डंटो से उनकी खबर देते हैं, यदि स्त्रियों का किया हुआ अनर्थ उनके पढ़ाने का परिणाम है तो पुरुषों का किया हुआ अनर्थ भी उनकी शिक्षा का ही परिणाम माना जाना चाहिए.
प्रश्न 3:- द्विवेदी जी ने स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग का सहारा लिया है.जैसे:- यह सब पापी पढ़ने का अपराध है| न वे पढ़ती है, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करती है आप ऐसे अनेक अंशो को निबंध में छातकर समझे और लिखें.
उत्तर :-
निबंध में छाटे गए ऐसे अर्थ जिसमें व्यंग का सहारा लिया गया है,आजकल भी ऐसे लोग विद्यमान है कि स्त्रियों को पढ़ाना उनके और गृह के नाश का कारण समझते हैं,और लोग भी ऐसे वैसे नहीं है, सुशिक्षित लोग- ऐसे लोग जिन्होंने बड़े-बड़े स्कूल और कॉलेज में भी शिक्षा पाई है, जो धर्म, शास्त्र और संस्कृति के ग्रंथ साहित्य से परिचय रखती हैं, और जिनका पेशा कुशिक्षितो को शिक्षित करना.
क - पुरानी ग्रन्थ में अनेक प्रगलभ पंडितो के नामोलेख देखकर कुछ लोग भारत की तत्कालीन स्त्रियों के मुर्ख, अनपढ़ और गवार बताते है.
ख - स्त्री के लिए पढ़ना कालकुट और पुरुषो के लिए पीयूष का घुठ. ऐसा दलील और दृष्टितो के आधर पर कुछ स्त्री को अनपढ़ रखकर भारत वर्ष का गौरभ बढ़ाना चाहते है.
प्रश्न 4:-पुराने समय में स्त्री द्वारा प्रकृति भाषा बोलना क्या उनके अनपढ़ होने का सबूत है पाठ के आधार पर स्पष्ट करें.
उत्तर :-
पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृतिक भाषा बोलना उनके अनपढ़ होने का सबूत नहीं है उस जमाने में प्राकृतिक ही सर्वसाधारण की भाषा थी, पंडितो ने अनेक ग्रन्थ प्रकृति भाषा में रची,भगवान मुनि और उनके चेले प्राकृति में ही धर्म उपदेश देते थे,बौद्ध का धर्म ग्रंथ 'त्रिपीतक भी प्राकृति मे रचा गया,
अतः पुराने समय में स्त्रियों द्वारा प्राकृति बोलना उनकी अनपढ़ का चिन्ह नहीं है, उस समय संस्कृत कुछ गिने चुने लोग ही बोलते थे, दूसरे लोग एवं स्त्रियॉ की भाषा प्रकृति रखने का नियम था.
प्रश्न 5:- परंपरा के उन्हें पक्षो को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री पुरुष समानता को बढ़ाते हो उत्तर दें
उत्तर :-
परंपरा में कई बातें चली आ रही है हो सकता है उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए परंपरा उचित हो, पर अब परंपरा के उन्ही पक्षो को स्वीकार किया जाना चाहिए जो स्त्री पुरुष समानता को बढ़ाते हैं, स्त्री पुरुष के समान है वे दोनों समाज के अभिन अंग है, एक अंग के कमजोर हो जाने से समाज की की गाड़ी सुचारु रूप से नहीं चल पायेगी, परंपरा की उन बातों को त्याग देना हमारे लिए हितकर है जो भेदभाव को बढ़ावा देती हो स्त्रियां भी समाज की उन्नति में उतने ही सौभाग्य है जितने पुरुष.
प्रश्न 6:- महावीर प्रसाद द्विवेदी के निबंध उनकी दूरगामी और खुली सोच का परिचायक है कैसे?
उत्तर :-
महावीर प्रसाद द्विवेदी खुली सोच वाले निबंधकार थे, उनके युग में स्त्रियों की दशा बहुत सोचनीय थी,उन्हें पढ़ाई लिखाई से दूर रखा जाता था पुरुष वर्ग मनमाने अत्याचार करता था, द्विवेदी जी इस अत्याचार के विरुद्ध थे, वे लिंग भेद के कारण स्त्रियों को हीन समझने के विरुद्ध थे, इसलिए उन्होंने अपने निबंधों में उनकी स्वतंत्रता की वकालत की.उन्होंने पुराणपंथीयो की एक एक बात को सशक्त तर्क से काटा,जहां व्यंग करने की जरूरत पड़ी उन पर व्यंग किया, वे चाहते थे कि भविष्य में नारी शिक्षा का युग शुरू हो, उनकी यह सोच दुर्गमिया थी, वे युग को बदलते के क्षमता रखते थे, उनकी प्रयास रंग लाई,आज नारिया पुरुषों से भी अधिक बढ़ गई है शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों पर हावी है.
प्रश्न 7:- द्विवेदी जी ने कीन्हे विक्षिप्त और गृहग्रस्त कहा है?
उत्तर :-
द्विवेदी जी ने स्त्री शिक्षा के कारण विरोधयों और पुराणपंथीयो को विक्षिप्त तथा गृहग्रस्त कहा ऐसे लोग आधुनिक युग में रहकर भी दकियासीबातों से चिपके हुए हैं वे नारी को पढ़ाने लिखाने के विरोधी हैं इस प्रकार वे उन पर मनमाना हुक्म चलाना चाहते हैं.
आर्थिक समस्या किसे कहते हैं -|| आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के कारण क्या है
आर्थिक समस्या किसे कहते हैं
उत्तर :-
आर्थिक समस्या से अभिप्राय यह है की मनुष्य की आवश्कता को पूरा करने के लिए साधन तो सिमित है परन्तु मनुष्य की आवश्कता असीमित है, अतः यह कहा जाये की साधन सिमित होने के कारण मनुष्य अपनी आर्थिक आवश्कता को पूरा नहीं कर पाता है, आर्थिक समस्या कहलाता है
आर्थिक समस्या को ही 'मूलभूत आर्थिक समस्या' भी कहते हैं।
आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के क्या कारण है?
आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के कारण निम्नलिखित है :-
A.कुटीर उद्योगों का पतन :-
जनजातियों का एक बड़ा भाग विभिन्न प्रकार की कुटीर उद्योग जैसे टोकरी बनाने चटाई बनाने बांस और लकड़ी के सामान बनाने तथा खिलौने बनाने के द्वारा अपनी सामान्य आवश्यकताओं को पूरा करने का था.
B.खेती का पिछड़ापन:-
जनजातियों का एक बड़ा भाग आज भी बहुत पुराने ढंग के उपकरणों के द्वारा परंपरागत ढंग से खेती कर काम करता है नई भूमि व्यवस्था के कारण उन्हें स्थानांतरण खेती करने की अनुमति नहीं है.
C. भूमि संबंधी समस्या :-
वर्तमान समय में जनजातियों की एक मुख्य आर्थिक समस्या ठेकेदारों और बाहरी समूह द्वारा उनकी कृषि भूमि पर नियोजित ढंग से अधिकार कर लेना है और बहरे समूह के लोगों द्वारा उन्हें लालच दिया जाता है बाद में उनकी भूमि पर अधिकार कर लेते है.
D. वन अधिकारियों द्वारा शोषण :-
जनजातियों का जीवन मुख्य रूप से वन या जंगली क्षेत्रों से प्राप्त होने वाली जड़ी बूटी, मछली और लड़कियों के संग्रह आधारीत नए कानूनों के द्वारा जनजातियों को जंगल से
ऐसे किन्ही भी वस्तु को जमा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया इसी कारण जंगल में ठेकेदार द्वारा उनकी तरह तरह के शोषण किया जाने.
F. पूर्वाभास के समस्या:-
आज जो जन जातीय जंगल से बेदखल कर दिए गए हैं या जिनके पास कोई कृषि भूमि नहीं है उन्हें पूर्वाभास की कोई सुविधा प्राप्त नहीं हो सके इससे जनजातियों में गरीबी की समस्या पहले से भी अधिक गंभीर हो गई.
धन्यवाद
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मानवीय करुणा की दिव्य चमक के प्रश्न उत्तर | manviya karuna ki divya chamak questions and answers
प्रश्न और उत्तर :-
प्रश्न 1:- फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर :-
फादर बुल्के की व्यक्तित्व देवदार के वृक्ष के समान विशाल था, वे सभी पर अपना व्यत्सल्य लुटाते थे,उनकी कृपा की छाया उनकी शरण में आने वाले हर व्यक्ति पर छाई रहती थी,अपनी आशीष से लोगों को भर देते थे,वे पारिवारिक उत्सवों एवं साहित्यिक गोष्ठियों में शामिल होकर पुरोहित जैसे प्रतीत होते थे,उनकी छाया सुखद होती थी यही कारण है कि उनकी उपस्थिति देवदार की छाया जैसी लगती थी.
प्रश्न 2:- फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग है किस आधार पर ऐसा कहा गया है?
उत्तर :-
फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं वे भारतीय संस्कृति के गहरे रूचि लेते थे, भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर वे भारत में चले आए थे यहीं उन्होंने कोलकाता और इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई किए, वे भारतीय संस्कृति के प्रतीक श्री रामचंद्र एवं तुलसीदास के अनन्य भक्त थे उनका जीवन भारतीय संस्कृति के मूल्यों के अनुरूप था उन्होंने हिंदी से लगाव था, उन्हें भारतीय संस्कृति के सभी बाते प्रिय थे.
प्रश्न 3:- पाठ के आये उन प्रसंगों का उल्लेख करें जिनसे फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है?
उत्तर :-
निम्नलिखित प्रशंगो से फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है :
(क ):- फादर बुल्के ने हिंदी में एम. ए किया.
(ख ):- प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रहकर 1950 में अपना शोध प्रबंध हिंदी में पूरा किया विषय था.
(ग ):- ब्लू वर्ल्ड का हिंदी रूपांतर " नीलपंछी "नाम से किया.
(घ ) अंग्रेजी हिंदी शब्द कोष तैयार किया
(ड़ ) बाइबल का हिंदी अनुवाद किया.
(च ) हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए जोरदार पैरवी की
प्रश्न 4:- इस पाठ के आधार पर फादर बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में बताएं.
उत्तर :-
फादर कामिल बुल्के एक आत्मीय सन्यासी थे वे ईसाई पादरी थे इसीलिए हमेशा एक सफेद कपडे धारण करते थे,उनका रंग गोरा था चेहरे पर सफेद झलक दिखाई देती हुई भरी दाढ़ी थी,आंखें नीली थी. बाहे हमेशा गले लगाने को आतुर दिखती थी. उनके मन में अपने परिजनों और परिचितों के प्रति असीम स्नेह था. वे सबको स्नेह, सांत्वना, सहारा और करुणा करुणा देने में समर्थ थे.
प्रश्न 5:- लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक क्यों कहा है?
उत्तर :-
लेखक ने फादर कामिल बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहां है फादर के मन में सब परिचितों के प्रति सद्भावना और ममता थी, वे सबके प्रति वात्सल्य भाव रखते थे, वे तरल ह्रदय के थे,वे कभी किसी से कुछ चाहते नहीं थे बल्कि दूसरे को मदद करते थे, वे हर दुख में साथी प्रतीत होते थे और सुख में बड़े बुजुर्ग की भांति व्यवहार करते थे, लेखक की पुत्र के मुँह में पहला अन भी डाला और उनकी मृत्यु पर सांत्वना भी दी, वास्तव में उनका ह्रदय सदा दूसरे के स्नेह में पिघलता रहता था उस तरलता की चमक उनके चेहरे पर साफ दिखाई देती थी.
प्रश्न 6:- नम आंखों को गिनना स्याहीफैलाना है स्पष्ट करें
उत्तर :-
फादर बुल्के की मृत्यु पर रोने वाले की कोई कमी नहीं थी उनके जाने पर अनेक लोगों की आंखों में आंसू थे उन लोगों की गिनती करना उचित ना होगा, क्योंकि उसके दुख और भी बढ़ जाएगा.
प्रश्न 7:- फादर को याद करना एक उददास शांति संगीत को सुनने जैसा है और स्पष्ट करें|
उत्तर :-
फादर बुल्के की मृत्यु के बाद याद करना है ऐसा ही अनुभव है मानो हम उदास संगीत सुन रहे हो, उनका स्मरण हमें उदास कर देता है इस उददासी में भी उनकी याद शांति संगीत की तरह गूंजती रहती है.
प्रश्न 8:-मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :-
इस पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए विश्व में सभी मनुष्य बराबर है,सभी के साथ करुणापूर्ण व्यवहार करो अपनी भाषा पर गर्व करना सीखो दूसरे के सुख दुख में साथी बनो,मानवीय करुणा सर्वोपरि है.
प्रश्न 9:- फादर कामिल बुल्के का जीवन किसलिए अनुकरणीय माना जा सकता है?
उत्तर :-
फादर कामिल बुल्के का जीवन अनुकरणीय था, वह सच्चे इंसान थे, उनके निर्दोष, निर्विकार आत्म थी, वे बड़े करुणापूर्ण, स्नेह सहयोगी और आत्मीय थे
वे अपने संपर्क में आने वाले को जल्दी अपना बना लेते थे, उनमे अपने पराए का छोटा मनोभाव नहीं था, वे उच्च छायादार पेड़ थे, उनके शब्दों में शांति झारती थी, वे सबके दिल जितना जानते थे.
.......... STUDY WITH MOTIVATION..........
" आप अपना भविष्य नहीं बदल सकते पर आप अपनी आदते बदल सकते है और निश्चित रूप से आपकी आदते आपका फ्यूचर बदल देगी"
:-A. P. J Abdul Kalam