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जनजातिय समुदाय का सीमान्तिकरण | sociology notes 12th class in hindi | हिंदी में 12 वीं समाजशास्त्र नोट्स

जनजातिय समुदाय का सीमान्तिकरण | sociology notes 12th class in hindi | हिंदी में 12 वीं समाजशास्त्र नोट्स




नमस्कार, आप सभी को हमारे वेबसाइट पेज पर आने के लिए। इस पर मै आप सभी के लिए क्लास 12 के यानि इंटरमीडिएट ऑफ़ आर्ट्स के एक टॉपिक के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। ये टॉपिक अत्यंत महत्वपूर्ण और जरुरी है इसलिए आप इस पोस्ट को अंतिम तक पढ़े और याद कर ले साथ ही आप इन सभी को अपने नोट बुक मे नोट्स कर ले यानि लिख कर रख ले क्योंकि समय आने पर इस तरह का पोस्ट कही देखने को नहीं मिलेगा। और साथ ही इस पोस्ट के निचे दिया हुआ फॉलो बटन को दबा के फॉलो कर ले ताकि मुझे मोटिवेशन मिले और ऐसा ही ढेर सारा पोस्ट आपके लिए ले कर आता रहूँगा धन्यवाद।






इस पोस्ट को क्यों पढ़े 

अब आप सोच रहे होंगे की आप इस पोस्ट को क्यों पढ़ेंगे। आप इस पोस्ट को इसलिए पढ़ेंगे क्योंकि आपको इस पोस्ट पर क्लास 12 के एक विषय के बारे मे बताने वाले है यानि इस विषय का सारा नोट्स आप के लिए ले कर आये है इसलिए आप इस पोस्ट को अंतिम तक पढ़े.।









इस पोस्ट पर क्या क्या पढ़ने को मिलेगा।

अब आप को लग रहा होगा की इस पोस्ट को अंतिम तक क्यों पढ़े क्योंकि आपको इस पोस्ट पर निम्नलिखित जानकारी मिलने वाला है इस आप इस पोस्ट को फॉलो कर ले और पूरा पढ़े।





इस पोस्ट पर आपको क्या पढ़ने को मिलेगा :-

अब हम आपको बताने वाले है की आपको इस पोस्ट क्या क्या पढ़ने को मिलेगा। इस पोस्ट पर आपको निम्नलिखित जानकार मिलने वाला है 


जनजातिय समुदाय का सीमान्तिकरण क्या है?


जनजातियों का आंतरिक सीमांतीकरन क्या है? 


जनजातियों का बाह्य सीमान्तीकरण क्या है? 


आर्थिक विकास सीमांतीकरण क्या है? 


रोजगार और सीमन्तिकरण क्या है?


शिक्षा और सीमन्तिकरण क्या है? 


 राजनीति और सीमन्तिकरण क्या है? 


संस्कृति और सीमन्तिकरण क्या है? 






जनजातीय समुदाय की सीमानांत क्या है? 


जनजातिय समुदाय का सीमान्तिकरण:-

 रोबर्ट. इ. पार्क ने सबसे पहले सीमांत व्यक्ति को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत किया उनके अनुसार जो व्यक्ति दुविधा में उलझने होने के कारण अपने बारे में कोई निर्णय लेने में असमर्थ होता है उसे हम सीमांत व्यक्ति कहते हैं



 जनजातियों में सीमेंटीकरण की समस्या का संबंध दो पक्षों से है :-

1 : आज जनजाति दुविधा उलझकर एक और बाहरी समुहो के मूल्यों को ग्रहण करने और अपने गुणों को छोड़ने की प्रक्रिया से गुजर रही है!


2 : बाहरी समूह द्वारा उन्हें किसी ना किसी तरह उन लाभो को पाने से रोकने की कोशिश की जा रही है, 


 जिसके वे वास्तव में अधिकार है इन दसाओ को जनजातियों का आंतरिक सीमांतीकरन और बाहरी सीमांतीकरन कहा जाता है, 




 जनजातियों का आंतरिक सीमांतीकरन :

 जनजातियों समाजो की विशेषताएं जिनके लिए जनजातिय बिख्यात थी वे पूरी तरह या आंशिक रूप से समाप्त हो चुकी है क्योंकि बाहरी समूह द्वारा उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता ! जैसे भोटय समुदाय के लोगो का युवा गृह अब लगभग समाप्त हो गए है,



 इसी तरह कुछ मुख्य परिवर्तन भी हुए :-

1. वे जनजाति जो सभ्य समाजों को लगभग पूरी तरह अपना चुकी है उनमें अनेक गांव का रूप में लगभग समाप्त हो गया है, 


2. जनजातीय समुदायों में परिवार की संरचना सयुक्त या विस्तृत प्रकार की थी आर्थिक कारणों और स्थान बदलने के कारण परिवार का यह परंपरागत रुप छोटे परिवार में बदल रहा है, 


3. जनजातियों पर सबसे अधिक प्रभाव हिंदू और इसाई धर्म का पड़ा है जनजातीय लोगों ने केवल हिंदुओं के देवी देवताओं को अपना बल्कि उनसे पूजा पाठ करने के तरीकों को भी अपनाया है.


4. जनजातीय समुदाय अपनी परंपरागत न्याय व्यवस्था का सहारा ना लेकर छोटे-छोटे मामलो के लिए भी सरकारी अदालत की शरण लेते हैं.

 भारत की जनजाति वर्तमान में संक्रमण की एक तेज दौर से गुजर रही है काम चाहे आंतरिक हो या बाहरी लेकिन उनके परिणाम स्वरुप जनजाति लोग बाहरी समाज के कारण तथा उनकी संस्कृति को अपनाने के कारण अधिकांश जनजातीय समुदाय सीमांत समुदाय बनकर रह गए हैं, 





 जनजातियों का बाह्य सीमान्तीकरण :- 

बाह्य सीमान्तीकरण वह प्रक्रिया है जो जनजातियों को उचित आर्थिक शिक्षा संस्कृति और राजनीति की सुविधा नहीं मिल पाने के कारण उत्पन्न हुई, 




आर्थिक विकास सीमांतीकरण :-

 परंपरागत रूप से जनजातियों का एक बड़ा हिस्सा जंगलो की भूमि पर खेती करके और जंगलो से मिलने वाले तरह तरह के पदार्थों के द्वारा अपना भरण-पोषण कर लेते थे, 

 लेकिन आजादी के बाद नए कानूनों द्वारा जनजाति पर वन संपत्ति का उपयोग करने और जंगलो से मिलने वाले पदार्थों को जमा करने पर रोक लगा दिए गए इसलिए जनजातियों का अपना मूल स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, 


 पिछले कुछ वर्षों से जनजातियों की गरीबी का लाभ उठाकर प्रभावशाली लोगों ने उन्हें अपनी भूमि से बेदखल करना शुरू कर दिया इसे रोकने के लिए भी कुछ कानून बनाए गए, 


लेकिन उन्हें जनजातियों को अधिक लाभ नहीं मिला जनजातीय क्षेत्रों में तब बड़े-बड़े मिल मालिक ने नये उद्योग लगाना शुरू किया तो एक बड़ी संख्या में जनजातियों लोग विस्थापित का जीवन जीने लगे,

 इससे जनजाति का जीवन उलझते गया. 




रोजगार और सीमन्तिकरण :-

 जनजातियों में लोक शिक्षा प्राप्त करके प्रशासन पुलिस जैसे उचित सेवा के अलावा सभी दूसरी सरकारी में स्थान पा सकते हैं, 

लेकिन नौकरी में आरक्षण की सुविधा केवल कुछ गिने-चुने शिक्षित लोगों के ही प्राप्त है दूसरी और अनुसूचित जनजातियों में शिक्षा की कमी होने के कारण वे सरकारी नौकरी पाने की कल्पना भी नहीं कर सकते है, 




 शिक्षा और सीमन्तिकरण :-

 इसाई मिशनरिओ ने शिक्षा का प्रचार करना शुरू किया तो उन्हें यह शिक्षा अपने लिए बहुत लाभप्रद हुई, धीरे-धीरे गरीबी के कारण जनजातियों लोग इस शिक्षा से अलग होने लगे, 

सरकार द्वारा भी इनके विकास के लिए शिक्षा से जुड़ी की योजना बनाई गई लेकिन ऐसी शिक्षा में प्रशिक्षण का अभाव होने के कारण अधिकांश बच्चे शिक्षा बीच में ही छोड़ देते थे




. राजनीति और सीमन्तिकरण :-

आजदी के बाद संसद से लेकर राज्य की विधान सभा और ग्राम पंचायत तक में अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित किए गए, लेकिन इन स्थानों पर जनजातियों के उन लोगों ने कब्जा कर दिया जिनकी पहुंच नेताओं तक थी,




 संस्कृति और सीमन्तिकरण :-

 लोक कला, लोक साहित्य, लोक संगीत और लोकनृत्य की सांस्कृतिक पहचान रहे लेकिन भारत में औद्योगिकरण बढ़ने के साथ उनकी संस्कृति और कलाएं विघटीट हो गई





जनजातीय समुदाय की सीमानांत :-

(1): जन जाति धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म ग्रहण किया या फिर हिंदू धर्म स्वीकार किया, धर्म परिवर्तन के बाद ही ना तो उन्हें पूरी तरह से ईसाई समाज मे स्थान मिल सका और ना ही हिंदू समाज में, हिंदू बनने के बाद उनसे जातियों के समान व्यवहार करना शुरू कर दिया, इसी कारण जनजातियों में जातीय विभाजन के समान ऊंच-नीच के भेदभाव विकसित हो गया.




(2): धर्म परिवर्तन के कारण:-

 बहुत से आदिवासी जनजाति सामाजिक संगठन में संदेह की नजर से देखा जाने लगा, हिंदू में खानपान विवाह और सामाजिक संपर्क के प्रतिबंध के कारण वे उस हिंदू जातियों से पूरी तरह अलग रहे,

ईसाई ने भी धर्म में परिवर्तन करके हिंदू बन जाने वाले आदिवासियों को अपने समूह से अधिक घुलने मिलने नहीं दिया,



 (3(: आज उत्तर पूर्वी भागों में अनेक जनजातियों में बहुत से व्यक्ति अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा के रूप में स्वीकार करने लगे, उन्होंने धीर धीरे अपनी मूल भाषा का त्याग कर दिया. 








मुझे आशा है की आपको अभी इस पोस्ट को यहाँ तक पढ़ रहे है तो आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा इसलिए आप इस पोस्ट को यहाँ तक पढ़ रहे है,



अगर अभी आपको कोई दिकत हुई होंगी पढ़ने मे या हमसे कोई गलती हो गई होंगी तो हमें माफ़ कर दीजियेगा।और कुछ पढ़ना चाह रहे होंगे तो हमें कमैंट्स जरूर करें धन्यवाद.


अंत मेआप जाते जाते इस पोस्ट को शेयर जरूर कर ले धन्यवाद.




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