sociology class 12 notes in hindi
नमस्कार, आप सभी को हमारे वेबसाइट पेज पर आने के लिए। इस पर मै आप सभी के लिए क्लास 12 के यानि इंटरमीडिएट ऑफ़ आर्ट्स के एक टॉपिक के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। ये टॉपिक अत्यंत महत्वपूर्ण और जरुरी है इसलिए आप इस पोस्ट को अंतिम तक पढ़े और याद कर ले साथ ही आप इन सभी को अपने नोट बुक मे नोट्स कर ले यानि लिख कर रख ले क्योंकि समय आने पर इस तरह का पोस्ट कही देखने को नहीं मिलेगा। और साथ ही इस पोस्ट के निचे दिया हुआ फॉलो बटन को दबा के फॉलो कर ले ताकि मुझे मोटिवेशन मिले और ऐसा ही ढेर सारा पोस्ट आपके लिए ले कर आता रहूँगा धन्यवाद।
इस पोस्ट को क्यों पढ़े
अब आप सोच रहे होंगे की आप इस पोस्ट को क्यों पढ़ेंगे। आप इस पोस्ट को इसलिए पढ़ेंगे क्योंकि आपको इस पोस्ट पर क्लास 12 के एक विषय के बारे मे बताने वाले है यानि इस विषय का सारा नोट्स आप के लिए ले कर आये है इसलिए आप इस पोस्ट को अंतिम तक पढ़े.।
इस पोस्ट पर क्या क्या पढ़ने को मिलेगा।
अब आप को लग रहा होगा की इस पोस्ट को अंतिम तक क्यों पढ़े क्योंकि आपको इस पोस्ट पर निम्नलिखित जानकारी मिलने वाला है इस आप इस पोस्ट को फॉलो कर ले और पूरा पढ़े।
इस पोस्ट पर आपको क्या पढ़ने को मिलेगा :-
अब हम आपको बताने वाले है की आपको इस पोस्ट क्या क्या पढ़ने को मिलेगा। इस पोस्ट पर आपको निम्नलिखित जानकारी मिलने वाला है
इस पोस्ट मे निम्नलिखित जानकारी प्राप्त होने वाला है :-
बाजार, बाजार विनिमय, बाजार विनिमय की विशेषता, बाजार प्रणाली, बाजार के प्रकार, भारत के बाजार का सामाजिक संगठन,
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संस्था शब्द का प्रयोग सबसे पहले स्पेंसर ने अपनी पुस्तक फर्स्ट प्रिंसिपल में किया था इनके अनुसार संस्था वह अंग है जीसके माध्यम से समाज के कार्यों को लागू किया जाता है
बाजार :-
किसी भी प्रकार की भूमि में में बाजार सबसे मुख्य संस्था है यह एक ऐसी आर्थिक शक्ति है जो वस्तुओं की कीमत को तय करती है.
शिवजी के अनुसार :-
बाजार व्यक्तियों की समूह या समुदाय को कहते हैं जिनके बिच इस प्रकार के आपसी वाणिज्यिक संबंधों की प्रत्येक व्यक्ति को आसानी से इस बात का पूरा ज्ञान हो जाएगी दूसरे व्यक्ति समय-समय पर कुछ वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय किस मूल्य पर करते हैं,
बाजार विनिमय:-
बाजार विनिमय की मुख्य विशेषता यह है कि वस्तुएं और सेवाएं रुपए में बेची और खरीदी जाती है बाजार विनिमय आर्थिक विनिमय ह
बाजार प्रणाली :-
जॉनसन ने बताया कि एक संस्था के रूप में बाजार एक सामाजिक प्राणी है
बाजार खरीदार और बेचने वाले की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र होने के साथ ही उनके सामाजिक संबंधों को प्रभावित करता है इससे जुड़े कुछ मुख्य तत्व :-
A. विनिमय के लिए वस्तु :-
यह वस्तु भौतिक और अभौतिक दोनों तरह के हो सकती है जैसे श्रम और कुशलता अभौतिक वस्तु है, जबकि व्यक्ति के दैनिक उपयोग में आने वाले वस्तुओं भौतिक होता है,
B. प्रतियोगिता :-
प्रतियोगिता बाजार का है एक आवश्यक तत्व है क्योंकि इसी के द्वारा विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य तय होता है.
C-संविदा :-
संविदा एक ऐसा तरीका है जिसके द्वारा पक्षो के बीच विनिमय का रूप होता है
D-श्रम विभाजन:-
एक बाजार तभी व्यवस्थित बनता है जब किसी वस्तु या सेवाओं से जुड़े विभिन्न कार्य उन लोगों में बांट दिए जाते हैं जिन्हें अपने अपने पक्षो के कार्य के विशेष ज्ञान होता है.
E-लाभ और संपत्ति :-
जब किसी मूल्यवान वस्तु पर व्यक्ति के अधिकार को मान्यता दी जाती है केवल वह तभी हम उस वस्तु को व्यक्ति की संपत्ति कहते हैं,
संपत्ति वह आधार है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने आर्थिक शक्ति को बढ़ाकर बाजार में विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त करता है
F-व्यस्था की अधिकता :-
जैसे जैसे व्यवसाय की संख्या बढ़ती है बाजार के क्षेत्र भी बढ़ने लगती है,
बाजार के प्रकार :-
(1):आदिम बाजार :-
आदिम बाजार में आर्थिक कार्य का रूप बहुत आसान होता है प्रया लोग वस्तु विनिमय के द्वारा अपने उपभोग की जरुरत को पूरा करते है,
व्यक्ति अपनी अवश्यकता की वस्तु को या तो प्रकृति के द्वारा प्राप्त कर लेते है, या उन्हें एक दूसरे के सहयोग से प्राप्त किया जाता है, सेवाओं का आदान प्रदान का स्तर भी बराबरी का देखने को मिलता है,
2-ग्रामीण बाजार :-
भूमि के महत्व को समझने पर जब कुछ प्रभावशाली लोगों ने भूमि के बड़े-बड़े हिस्से पर अधिकार करना शुरू कर दिया तो उस भूमि पर होने वाला उत्पादन उनके उपभोग की जरूरत से अधिक होने लगा,
इस उत्पादन को दूसरे लोगो को उनके अधिक उपयोगी वस्तु प्राप्त करने की कोशिश से लाभ की भावना बढ़ने लगी, जो लोग भूमि के इन मालिक की जमीन पर काम करते थे ,
उनके श्रम का बहुत कम मूल्य देकर उनका शोषण किया जाने लगा है इस प्रकार एक ऐसी बाजार व्यस्था विकसित होने लगी, जिनसे उत्पादन और सेवा देने वाले लोगों के बीच अधिकार और अधीनता का संबंध में लगा,
3. औधोगिक बाजार :-
औधोगिक बाजार उद्योग का विकास हुआ तो उत्पादन प्रणाली में सुधार होने लगी मशीनों द्वारा बड़े स्तर पर उत्पादन होने से उत्पादन का उद्देश्य लाभ प्राप्त करना हो गया,
इसी कारण ऐसी वस्तुओं का उत्पादन को अधिक महत्व दिया जाने लगा, जो प्रया लोगो के लिए उपयोगी होने के साथ ही उनके आर्थिक साधनों के अनुकूल थी यहीं से बाजार में व्यवस्थित रूप देना शुरू कर दिया
4- मुक्त बाजार :-
यह वह बाजार है जिसमें किसी प्रकार की रोकथाम क्या प्रतिबंध नहीं होता, यह नियम एवं कानून से मुक्त होता है इसीलिए इसे मुक्त या खुला बाजार कहा जाता है जैसे गांव में लगने वाले साप्ताहिक बाजार.
भारत के बाजार का सामाजिक संगठन:-
परंपरागत रूप से यहां का बाजार किस की ना किसी रूप में जाति व्यवस्था से प्रभावित रहा, उपनिवेश काल से पहले भारतीय समाज में कोई बैंकिंग व्यवस्था नहीं होने के बाद भी वैश्य और मारवाड़ी समुदाय में कुछ लोग बड़े स्तर पर कर्ज देने का काम करते थे,
यह काम इतना व्यवस्थित था कि इसे बैंकिंग व्यवस्था के समान ही माना जाता था,
व्यापार के कार्य मे हुंडी की प्रथा का प्रचलन था, हुंडी एक ऐसी दस्तावेज या वचन पत्र है, जिसमे किसी वस्तु को खरीदने वाले व्यक्ति विक्रेता को एक निश्चित राशि का भुगतान निश्चित समय पर करने का वचन देता है,
अगर अभी आपको कोई दिकत हुई होंगी पढ़ने मे या हमसे कोई गलती हो गई होंगी तो हमें माफ़ कर दीजियेगा।और कुछ पढ़ना चाह रहे होंगे तो हमें कमैंट्स जरूर करें धन्यवाद.
अंत मे आप जाते जाते इस पोस्ट को शेयर जरूर कर ले धन्यवाद.