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जाती व्यवस्था क्या है / जाति की परिभाषा क्या है / जाती व्यवस्था की विशेषताएं / जाती व्यवस्था की दोष / जाति व्यवस्था में परिवर्तन के कारण / जाति व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तन

जाती व्यवस्था क्या है / जाति की परिभाषा क्या है / जाती व्यवस्था की विशेषताएं / जाती व्यवस्था की दोष /  जाति व्यवस्था में परिवर्तन के कारण / जाति व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तन 



नमस्कार, 


नमस्कार, आप सभी को हमारे वेबसाइट पेज पर आने के लिए। इस पर मै आप सभी के लिए क्लास 12 के यानि इंटरमीडिएट ऑफ़ आर्ट्स के एक विषय मे से एक टॉपिक के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है। ये टॉपिक अत्यंत महत्वपूर्ण और जरुरी है इसलिए आप इस पोस्ट को अंतिम तक पढ़े और याद कर ले साथ ही आप इन सभी को अपने नोट बुक मे नोट्स कर ले यानि लिख कर रख ले क्योंकि समय आने पर इस तरह का पोस्ट कही देखने को नहीं मिलेगा। और साथ ही इस पोस्ट के निचे दिया हुआ फॉलो बटन को दबा के फॉलो कर ले ताकि मै मोटिवेशन मिले और ऐसा ही ढेर सारा पोस्ट आपके लिए ले कर आता रहूँगा धन्यवाद।




इस पोस्ट पर क्या क्या पढ़ने को मिलेगा।

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 जाती व्यवस्था क्या है?, जाति की परिभाषा क्या है, 

जाती व्यवस्था की विशेषताएं, जाती व्यवस्था की दोष, जाति व्यवस्था में परिवर्तन के कारण, जाति व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तन, इत्यादि के बारे मे, तो आइये जानते है !







जाति व्यवस्था क्या है? 

जाति व्यवस्था सामाजिक संस्थान का एक विशेष रूप है जो पवित्रता और अपवित्र धारणा के आधार पर विभिन्न जाति समूह के आपसी संबंधोंजाति व्यवस्था क्या है? को तय करता है





 जाति व्यवस्था की विशेषताएं:-

 जाति व्यवस्था की उत्पत्ति का सिद्धांत:-


(1) : परंपरागत सिद्धांत:-

 हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मणों का जन्म ब्रह्मा के मुख्य से, क्षत्रियो के बाह के बाहु से, वेश्या का जन्म उदर से और सूत्रों का जन्म ब्रह्मा के पैर हुआ था.







(2) : प्रजाति सिद्धांत:-

 रिजले के अनुसार -" आर्य ने भारत मे द्रवीडॉ पर विजय प्राप्त करके उनसे दास की तरह व्यवहार करना शुरू किया आर्य और द्रविड़ प्रजाति एक दूसरे से अलग थी,

धीरे-धीरे रक्त की वीशुधता के आधार पर आर्य लोग स्वयं ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य जैसे वर्णों में बट गए, इसके बाद विभिन्न वर्गों के बीच प्रजातियां मिश्रण होने से जिन नये समूह के निर्माण हुआ व उन्हें को एक जाती के रूप में देखा जाने लगा.






(3): व्यवसायिक सिद्धांत:-

 इस सिद्धांत के मुख्य नेसफिल्ड है नेट नेसफिल्ड के अनुसार :- 

जाति व्यवस्था की उत्पत्ति में पेशा मुख्य कारण है, विभिन्न पेसा की पवित्रता एक दूसरे से अधिक और कम होने के कारण ही उनसे जुड़े जातियों की परिस्थिति भी एक दूसरे से उच्च और निम्न हो गई,

 एक बार व्यवसाय के आधार पर जब जातियाँ का निर्माण हो गई तब उनके बिच विवाह खान पान और सामाजिक संपर्क के आधार पर विभाजन बढ़ने लगा.




(4) : ब्रहमान वादी सिद्धांत:-

 इस स्थान को डॉक्टर जे. ऐस. घूरीया ने स्वीकार किया था, उनके अनुसार भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति ब्राह्मणों की एक चतुर और सुनोयोंजीत योजना थी, 

इसका उद्देश्य सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों को पवित्रता के आधार पर उसे विशेष अधिकार देना था, 




(5): धार्मिक सिद्धांत:-

यह सिद्धांत सोनारट द्वारा बताया गया, प्राचीन भारत में धार्मिक कार्यो को पूरा करने में अनेक तरह की सेवा की आवश्यकता होती है,  


और इन आवश्यकता को पवित्रता और अपवित्रता के आधार पर उनके बीच उच्च नीच का क्रम पाया जाता है, पवित्रता और अपवित्रता के आधार पर ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या और शूत्र जाती का रंग सफ़ेद, लाल, पीला और काला बताया गया,  





 जाति व्यवस्था के दोष :-

 जाति व्यवस्था के दोष निम्नलिखित है 


(1) : सामाजिक क्षेत्र में :-

A. छुआछूत की समस्या

B. सामाजिकरण शोषण, 

C. जाती संघर्ष, 

D- धार्मिक शोषण,   




 2. आर्थिक क्षेत्र:-

 A- आर्थिक कुशलता में कमी

 B- अंउत्पादक वर्ग का निर्माण 

C- स्थानीय गतिशीलता मे बाधक, 



3. राजनीतिक क्षेत्र :-

A. राष्ट्रीय एकता में बाधक





जाति व्यवस्था में परिवर्तन के कारण:-


(1): धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना:-

 संविधान के द्वारा धार्मिक जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के सामाजिक समानता और स्वतंत्रता को महत्व दिया गया!



 (2):औद्योगीकरण नगरीकरण:-

 औद्योगिक विकास से लोगों को अपनी जातीय व्यवसाय को छोड़कर नए व्यवसाय करने के अवसर मिले, नगरीकरण के कारण जातियों की स्थानीय दूरी समाप्त की गई. 



(3):शिक्षा का प्रसार:-

 शिक्षा के कारण जाति व्यवस्था से जुड़े अंधविश्वास का प्रभाव समाप्त होने लगा.



(4): नए सामाजिक नियम:-

 नई सामाजिक नियम के कारण जाति व्यवस्था से जुड़े नियम समाप्त होने लगे.



(5): संयुक्त परिवार का विघटन :-

व्यक्तियों को जीवन के आरंभ से ही जाति के नियमों का पालन करने की शिक्षा मिलना बंद हो गया.


(6): महिला जागरूकता:-

 महिलाओं द्वारा उन सभी नियमों का विरोध करना शुरू किया जिनके द्वारा उन्हें परिवार में सभी तरह के अधिकारों से दूर कर दिया गया था.



 (7):सुधार आंदोलन:-

 जातीय भेदभाव को दूर करने में आर्य समाज रामकृष्ण मिशन और अन्य संगठनों की मुख्य भूमिका रही.




 जाति व्यवस्था में आधुनिक परिवर्तन --

 (1):ब्राह्मणों के अधिकार में कमी:-

 दक्षिण भारत और देश के अनेक दूसरे हिस्सों में राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से ब्राह्मण जातियों का संगठित रूप से विरोध किया जाने लगा.



 (2):जाति स्थानतरन मे परिवर्तन:-

 आज कोई भी जाति किसी दूसरे जाति को अपने से अधिक उच्च मानने के लिए तैयार नहीं है.




(3): व्यवसाय के चुनाव में स्वतंत्रता:-

 बेटी अपनी जाति के लिए तय की गई व्यवसाय को आवश्यक नहीं समझा नगरों में सभी व्यवसाय सभी जातियों के लोगों द्वारा किया जाने लगा.



(4): विवाह संबंधित नियमों में परिवर्तन :-

 आज अंतरजातीय विवाह की संख्या बढ़ रही है विवाह विच्छेद को गलत नहीं समझा जाता है और बाल विवाह को कानून के द्वारा समाप्त कर दिया.



(5): जाति के संबंधों में परिवर्तन:-

  आज सभी व्यक्ति अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों को पूरा करने के लिए सभी जातियों से संबंध बना रहे हैं.







धन्यवाद 

मुझे आशा है की आपको अभी इस पोस्ट को यहाँ तक पढ़ रहे है तो आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा इसलिए आप इस पोस्ट को यहाँ तक पढ़ रहे है,





अगर अभी आपको कोई दिकत हुई होंगी पढ़ने मे या हमसे कोई गलती हो गई होंगी तो हमें माफ़ कर दीजियेगा।और कुछ पढ़ना चाह रहे होंगे तो हमें कमैंट्स जरूर करें धन्यवाद


अंत मे आप जाते जाते इस पोस्ट को शेयर जरूर कर ले धन्यवाद.

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